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वि॒द्मा हि रु॒द्रिया॑णां॒ शुष्म॑मु॒ग्रं म॒रुतां॒ शिमी॑वताम् । विष्णो॑रे॒षस्य॑ मी॒ळ्हुषा॑म् ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

vidmā hi rudriyāṇāṁ śuṣmam ugram marutāṁ śimīvatām | viṣṇor eṣasya mīḻhuṣām ||

पद पाठ

वि॒द्म । हि । रु॒द्रिया॑णाम् । शुष्म॑म् । उ॒ग्रम् । म॒रुता॑म् । शमी॑ऽवताम् । विष्णोः॑ । ए॒षस्य॑ । मी॒ळ्हुषा॑म् ॥ ८.२०.३

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:20» मन्त्र:3 | अष्टक:6» अध्याय:1» वर्ग:36» मन्त्र:3 | मण्डल:8» अनुवाक:3» मन्त्र:3


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शिव शंकर शर्मा

सेना का बल ज्ञातव्य है, यह दिखलाते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - (रुद्रियाणाम्) दुःखापहारी (शिमीवताम्) कर्मपरायण और (विष्णोः) पोषक (एषस्य) अभिलषणीय अन्नों की (मीढुषाम्) वर्षा करनेवाले (मरुताम्) मरुन्नामक सैन्यजनों को (विद्म+हि) हम लोग अवश्य जानते हैं ॥३॥
भावार्थभाषाः - भाव इसका यह है कि सेना की क्या शक्ति है, उसको क्या अधिकार है, वह जगत् में किस प्रकार उपकारिणी बन सकती है, इत्यादि विषय विद्वानों को जानने चाहियें। वे सैन्यजन दुष्टों को शिष्ट बनावें। यदि वे अपनी दुष्टता न छोड़ें, तो उनके धन से देश के उपकार सिद्ध करें ॥३॥
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (रुद्रियाणाम्) बलिष्ठपुरुषों की सन्तान (शिमीवताम्) प्रशंसनीय कर्मोंवाले (विष्णोः) सर्वत्र होनेवाले (एषस्य) इष्ट पदार्थों की (मीळ्हुषाम्) वर्षा करनेवाले (मरुताम्) शूरों के (उग्रम्, शुष्मम्) तीक्ष्ण बल को (विद्म, हि) हम जानते हैं ॥३॥
भावार्थभाषाः - हे वीर पुरुषों की सन्तान ! आप प्रजाहितकारक कर्म करनेवाले तथा हमें इष्ट पदार्थों के देनेवाले हैं, इसलिये हम आपका सत्कार करते हैं अर्थात् वीर योद्धा पुरुषों की सन्तान भी शौर्यादि गुणसम्पन्न होकर स्वधर्म तथा स्वदेश की रक्षा करने के कारण प्रशंसनीय तथा सत्करणीय होती है, अतएव उचित है कि सब प्रजाजन, समष्टिरूप से उन वीरों के सत्कार करने में सदैव तत्पर रहें ॥३॥
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शिव शंकर शर्मा

सेनाबलं ज्ञातव्यमिति दर्शयति।

पदार्थान्वयभाषाः - रुद्रियाणाम्=रुद्राणाम्=दुःखद्राविणाम्। स्वार्थे प्रत्ययः। शिमीवताम्=कर्मवताम्। पुनः। विष्णोः=व्यापकस्य। पोषकस्येत्यर्थः। एषस्य=एषणीयस्य अन्नस्य। मीढुषाम्=सेक्तॄणाम्। मरुताम्=मरुन्नामकानां सैन्यानाम्। उग्रम्। शुष्मम्=बलम्। वयं विद्म हि=जानीम एव ॥३॥
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (रुद्रियाणाम्) रुद्रपुत्राणाम् (शिमीवताम्) क्रियावताम् (विष्णोः) सर्वत्रगस्य (एषस्य) इष्टपदार्थस्य (मीळ्हुषाम्) वर्षितॄणाम् (मरुताम्) शूराणाम् (उग्रम्, शुष्मम्) तीक्ष्णम् बलम् (विद्म, हि) जानीमो हि ॥३॥